Sunday 12 February 2017

Hair transplant Summary

हेयर ट्रांसप्लांट की मूलभूत बातें 

हेयर ट्रांसप्लांट शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में बाल ट्रांसप्लांट करने के द्वारा हेयर लॉस वाले क्षेत्रों का उपचार करने में प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया है।
यह मुख्यतः पुरुष पैटर्न गंजेपन में प्रयोग की जाती है, किन्तु महिला पैटर्न गंजेपन, ट्रामा, जलने, सर्जिकल चीरे, आदि के कारण होने वाले हेयर लॉस में भी प्रयोग की जाती है।
पुरुष पैटर्न गंजापन अधिकांश मामलों में, लगभग 90% में देखने को मिलता है। मुख्यतः दो प्रकार के मरीज़ होते हैं, पहले प्रकार में 20 वर्ष से कम उम्र वाले युवा जिनमें गंजेपन का उच्च स्तर विकसित हो चुका है तथा दूसरे में 40 वर्ष से कम उम्र के वे व्यक्ति हैं जो अपनी उम्र के अनुसार औसत बालों से अधिक खो चुके होते हैं।
हेयर ट्रांसप्लांट एक कॉस्मेटिक प्रक्रिया है। यह एक शुद्ध चयनात्मक प्रक्रिया है और रोगी की व्यक्तिगत इच्छाएं इस ऑपरेशन को कराने के लिए प्रमुख प्रेरक कारक हैं। इस प्रक्रिया से होने वाले लाभ अत्यधिक हो सकते हैं। गंजापन उस व्यक्ति के सामाजिक एवं पेशेवर, दोनों प्रकार के जीवन को प्रभावित कर सकता है, तथा वे लोग जो इसके प्रति संवेदनशील हैं, इसके बारे में बहुत संकोची हो जाते हैं तथा अन्य व्यक्तियों के साथ आत्मविश्वास पूर्ण ढंग से बात करने में असमर्थ हो जाते हैं। हेयर ट्रांसप्लांट इन स्थितियों में जीवन परिवर्तक साबित हो सकता है।

पुरुष पैटर्न गंजापन या एंड्रोजेनेटिक एलोपेसिया को आनुवंशिक तरीके से नियंत्रित किया जाता है। बालों के कोष एक निश्चित उम्र पर बालों का उत्पादन बंद कर देने के लिए आनुवंशिक रूप से प्रोग्राम किये जाते हैं, जो आनुवंशिक कारकों द्वारा निर्धारित होता है। इन जींस को टेस्टोस्टेरोन के प्रभाव द्वारा सक्रिय किया जाता है। हेयर लॉस को नॉरवुड स्केल के अनुसार ग्रेड किया जाता है तथा 1 से 7 के बीच में ग्रेड दिया जाता है। सामान्यतः ग्रेड 6 एवं 7, सर्वाधिक कंप्लीट व्यापक लॉस, हेयर ट्रांसप्लांटेशन के लिए उपयुक्त नहीं होता है। गंजेपन की प्रक्रिया के दौरान, बाल सीधे गिरते नहीं हैं, बल्कि इसके बजाय बाल धीरे धीरे पतले एवं छोटे होना शुरू होते हैं और अपनी पूरी लंबाई प्राप्त नहीं कर पाते।
इस तरीके में बालों का घनत्व सिर की त्वचा को ढँकने के हिसाब से कम हो जाता है। बाल, जो झड़ जाते हैं और तकिए पर और नहाने के दौरान देखे जाते हैं, गंजेपन के कारण नहीं होते हैं।

इतिहास

हेयर ट्रांसप्लांट के दस्तावेजीकृत मामले 19वीं सदी के आरंभ में दर्ज किए गए, जब कुछ सर्जनों ने सिर की त्वचा की कुछ परतें और मुक्त ग्राफ्ट गंजेपन वाले क्षेत्रों में ट्रांसप्लांट किए। सन 1930 के आसपास जापान में भी हेयर ट्रांसप्लांट किया गया था, जहाँ क्षतिग्रस्त भौंहों को बदलने के लिए बालों को ट्रांसप्लांट किया गया था। हेयर ट्रांसप्लांट का नवीनतम युग 1950 के दशक में शुरू हुआ जब डॉ. एन. ओरेंट्रीच ने मुक्त डोनर ग्राफ्टों को गंजेपन वाले क्षेत्रों में ट्रांसप्लांट किया। उन्होंने बताया कि बालों की दीर्घायुता ‘डोनर के प्रभाव के अनुसार’ होती है, यानी बालों का जीवनकाल उस स्थान द्वारा निर्धारित होता है जिसमें यह मूल रूप से उगे थे, और ये उस स्थान से निर्धारित नहीं होते जहाँ इन्हें ट्रांसप्लांट किया गया था। डॉ. पी. वाल्टर ने ‘सुरक्षित डोनर जोन’ को परिभाषित किया जिसमें अधिकतम जीवनकाल दीर्घायुता वाले बाल शामिल होते हैं।
सर्जनों ने छोटे और अधिक छोटे ग्राफ्ट ट्रांसप्लांट करने की तकनीकें विकसित करना जारी रखा। शुरुआत में, पंच ग्राफ्ट लिए जाते हैं किन्तु इसने नए बालों को अप्राकृतिक अपीयरेंस प्रदान किए। 1990 में, लिमर ने पट्टियों से कूपिक इकाइयों को निकालने के लिए माइक्रोस्कोप का प्रयोग करने की तकनीक का विकास किया। तब से कूपिक इकाई ट्रांसप्लांटेशन के लिए स्वर्णिम मानक बन गई। 2002 में, एकल कूपिक इकाइयों के निष्कर्षण के साथ एफ़यूई का विकास हुआ। आरंभ में, मैनुअल पंच प्रयोग किए जाते थे, किन्तु 2004 से एफ़यूई में मोटरयुक्त ड्रिल प्रयोग की जाने लगी और यह वर्तमान में सर्वाधिक उन्नत तकनीक है।

विधियां:

‘सुरक्षित डोनर ज़ोन’ की अवधारणा हेयर ट्रांसप्लांट का आधार है। यह ध्यान दिया जाएगा कि अधिकाँश गंजे तथा बड़ी उम्र के व्यक्तियों में भी, पश्चकपाल एवं कनपटी के क्षेत्रों में बाल अभी तक बचे हुए हैं। ये वे क्षेत्र हैं जिनमें बाल पूरे जीवन काल के दौरान बने रहने के लिए आनुवंशिक रूप से प्रोग्राम होते हैं। यह हेयर ट्रांसप्लांट के लिए संग्रहण क्षेत्र का निर्माण करता है। बाल इस क्षेत्र से लिए जाते हैं और फिर गंजेपन वाले क्षेत्रों में ट्रांसप्लांट किए जाते हैं। ट्रांसप्लांट किए गए बाल पूरे जीवन के दौरान बने रहते हैं तथा यही कारण है जो हेयर ट्रांसप्लांट को इतना मूल्यवान बनाता है।
हेयर ट्रांसप्लांट को दो मुख्य विधियों एफयूटी तथा एफ़यूई से किया जाता है। इनमें केवल बाल निकालने के तरीके की भिन्नता होती है, प्लान्टेशन एक ही तरीके से किया जाता है।
एफयूटी या कूपिक इकाई (फ़ॉलिक्युलर यूनिट) ट्रांसप्लांटेशन या पट्टी (स्ट्रिप) विधि में, 1 सेमी चौड़ी त्वचा की एक पट्टी पश्चकपाल एवं कनपटी के क्षेत्रों से काटी जाती है। टेक्नीशियन उसके बाद इस पट्टी को व्यक्तिगत बाल कूपिकों में विभाजित करते हैं। इन कूपिकों को द्वितीय स्तर में गंजे क्षेत्रों में ट्रांसप्लांट किया जाता है।
एफ़यूई नामक नवीनतम विधि में, 1 से 4 बालों वाले प्रत्येक बाल कूपिक को हटाने के लिए 1 मिमी या उससे छोटे आकार की एक ड्रिल का प्रयोग किया जाता है। छोटे गोलाकार छिद्र छूट जाते हैं और कोई भी दृश्य धब्बा नहीं छोड़ते। 4 बाल कूपिकों में से 1 को ड्रिल करके बाहर निकाला जाता है और परिणामस्वरूप डोनर स्थल पर हलका कम बालों का घनत्व दिखाई नहीं देता। प्लान्टेशन विधि भी इसी के समान होती है।
प्लान्टेशन की साधारण विधि एक छोटा चीरा बनाना तथा बाल कूपिक को इसमें रोपना है। यह चीरा एक छोटी छुरी या सुई का प्रयोग करके बनाया जाता है। हाल ही में, चोई इम्प्लांटर जैसे अनुकूलित ट्रांसप्लांटरों का विकास हो चुका है जो प्रक्रिया को अपेक्षाकृत तेज और आसान बनाते हैं। प्लान्टेशन प्रायः सहायकों द्वारा किया जाता है।
दोनों ही विधियां एलए के अंतर्गत की जाती हैं। एफ़यूई का एक बड़ा लाभ यह है कि यह प्रक्रिया के बाद सबसे कम दर्दनाक होती है तथा यह कोई धब्बा नहीं छोड़ती। इसका नुकसान यह है कि यह अपेक्षाकृत अधिक समय लेती है और अधिक सत्रों की आवश्यकता होती है। एफयूटी में, मरीज़ के सिर के पिछले हिस्से पर एक सिलाई होती है, जो धब्बे के अतिरिक्त चीरे के ठीक हो जाने के बाद भी महीनों तक असुविधा का कारण बनता है। एफ़यूई में, औसतन लगभग 1000 बाल प्रतिदिन किए जाते हैं जबकि एफयूटी में 2000 बाल तक प्रतिदिन किए जा सकते हैं। प्रायः एक दिन का एक सत्र लगभग 6 घंटे तक चलता है। लंच के लिए ब्रेक, टॉयलेट ब्रेक, आदि बिना किसी समस्या के किसी भी समय लिए जा सकते हैं। मरीज़ सत्र के बाद घर जा सकता है और आवश्यकता होने पर दूसरे सत्र के लिए अगले दिन पुनः आ सकता है। साधारणतया एफ़यूई, एफयूटी की तुलना में अधिक महंगा होता है क्योंकि सर्जन को अधिक समय देना पड़ता है।
प्लान्टेशन के लिए, सर्जन को हेयरलाइन की अपीयरेंस निर्धारित करनी पड़ती है तथा फिर इसे खींचना पड़ता है। ट्रांसप्लांट करने के लिए नियोजित बालों की मात्रा, रोगी की उम्र, मूल बालों की अग्रिम हानि की संभावना, प्राकृतिक अपीयरेंस, नियोजित बालों का घनत्व, आदि वे सभी कारक हैं जिन पर विचार किए जाने की आवश्यकता होती है। हेयरलाइन की ड्राइंग विज्ञान से ज्यादा एक कला है।

2 comments:

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